बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर


बड़ौदा के महाराज सयाजीराव के साथ किये गए अनुबंध के अनुसार बाबा साहेब को वहां 10 साल नौकरी करनी थी उस वचन को पूरा करने के लिए जब बाबा साहेब बड़ौदा रियासत जा रहे थे तो उनका मन प्रफुल्लित हो रहा था l उन्हें कभी अपने द्वारा अर्जित किये गए ज्ञान से समाज को बदलने का ख्याल आता तो कभी रमा के त्याग समर्पण को समझ उसे भी सुख सुविधा देने का विचार उठता l अपने पुत्र यशवंत का ख्याल करते तो कभी बचपन में स्कूल के दौरान हुए अमानवीय जुल्म को याद कर सिहर उठते l जैसे ही ट्रैन बड़ौदा स्टेशन पर रुकी बाबा साहेब अपने दायित्व को निभाने के लिए तेज क़दमों के साथ चल दिए l बाबा साहेब के बड़ौदा रियासत में कदम रखते ही हज़ारों वर्षों से मानवता को कलंकित करने वाला अमानवीय वर्गीकरण के तहत खड़ा किया गया जातीय अहंकार लड़खड़ाने लगा l
ब्राह्मणों को चिंता अपने ब्राह्मणी दुर्ग को बचाने की हो रही थी l वो सोच रहे थे कि विदेश से पढ़कर आ रहा अछूत हमें आदेश करेगा l हमें उसका आदेश मानना होगा ! एक शूद्र और वह भी अतिशूद्र l अछूत, ब्राह्मण को आदेश करेगा ! शास्त्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन होगा l आने वाली हमारी संताने हमें कायर और कमजोर मानेंगी l सैकड़ों वर्षों की मजबूत ब्राह्मण संस्कृति पर एक व्यक्ति भारी पड़ रहा था l यह तो हमारे लिए डूबकर मरने की बात होगी l एक अछूत के कार्यालय में कदम रखते ही हमारी पवित्रता खंडित हो जाएगी l कोई कहता मैं नौकरी छोड़ दूंगा, नौकरी से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे लिए धर्म को बचाना है l मैं अछूत के साथ कार्य करके कलंकित नहीं होना चाहता l मेरा सामान केवल मेरे ब्राह्मण बने रहने में ही है l कोई कहता मैं अपनी में और कुर्सी अलग रखूँगा l कोई कह रहा था मैं तो गौ-मूत्र साथ लेकर आया हूँ, एक अछूत की परछाई से अपवित्र होने के कारण गौ-मूत्र से अपने आप को बचाने का प्रयास करूँगा l क्या करें घोर कलयुग आ गया l बड़ौदा महाराज ने हमारे रास्ते में कांटे बो दिए l गौ-मूत्र का प्रबंध कर लिए गया था l किसको क्या करना है पहले से ही तय हो चूका था l सबके सामने बस यही समस्या थी कि एक शूद्र अधिकारी से अपने आप को कैसे पवित्र रखा जाये l
उधर डा० अम्बेडकर अपने मजबूत इरादों के साथ, ज्ञान से सुसज्जित होकर मानवीय दृष्टिकोण को लेकर विदेश में मिले स्वच्छ व स्वतंत्र वातावरण की अनुभूति लिए कार्यालय में कदम रखा l सोच रहे थे जिस सम्मान के साथ विदेशियों ने विदा किया था उसी सम्मान के साथ यहाँ स्वागत होगा l विदेश से ज्ञान प्राप्त कर लौटना कोई छोटी और साधारण बात नहीं थी l लेकिन यह क्या … ? ज्यों ही डा० अम्बेडकर ने अपना
पहला कदम ऑफिस में रखा तो देखा कि चपरासी पैरों में बिछाने वाली चटाई को समेत रहा था l दूसरे व्यक्ति ने कोने में रखी मेज की तरफ इशारा करके कहा कि यह आप के लिए है l सभी लोग आश्चर्य चकित हो रहे थे l कोई कह रहा था यह तो बहुत सुन्दर है, सजिला है, बलिष्ट भी है ! यह तो अछूत लगता ही नहीं ! कोई कह रहा था सुन्दर है तो क्या हुआ, है तो अछूत ! कार्यालय में गहरी ख़ामोशी को तोड़ते हुए कानाफूसी के शब्द, व्यंग वाणों की भांति डा० अम्बेडकर के कानों में बारी-बारी से चुभ रहे थे l
डा० अम्बेडकर निर्धारित सीट पर जा कर बैठ गए l उधर सवर्णों की योजना अनुसार गौ-मूत्र का छिड़काव पूरे कार्यालय में किया तथा कुछ बूंदे अपने ऊपर भी डाली और इस प्रकार अछूत के प्रभाव से स्वयं को बचाने का एक प्रयास किया l डा० अम्बेडकर ने चाहा कि अधिकारी उनका परिचय कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों से करवाये तथा उनके कार्य के बारे में भी बताएं पर वैसा नहीं हुआ l डा० अम्बेडकर समझ गए कि यह विदेश नहीं, भारत देश है l यहाँ विद्वान नहीं ब्राह्मण होना ही सार्थक है l सोचा जाकर कैंटीन में जाकर चाय पी लू लेकिन वहां भी उनके पहुँचते भगदड़ सी मच गयी l सभी सीट छोड़ कर भागने लगे और चिल्लाने लगे बचो  बचो अछूत आ गया l कैंटीन मालिक भी चाय देने से इंकार कर दिया और वहां से जाने के लिए बोला l इसके पश्चात डा० अम्बेडकर के मन में सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध एक जबरदस्त तूफान उठ रहा था l

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4 Responses to बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर

  1. lalit chandra arya says:

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