होली का सच


Written by: Akash Suryavanshi

लगभग ईसा से 3100 साल पहले इडिया में यूरेशिया की एक खूंखार जाति जिसको आर्य कहा जाता था का आगमन हुआ था। यूरेशिया, यूरोप और एशिया के बीच की जगह का नाम है और आज भी यह स्थान काला सागर के पास मौजूद है। इस बात के आज बहुत से प्रमाण भी मौजूद है। ज्यादा जानकारी के लिए आप लोग हमारा लिखा लेख “DNA REPORT 2001” पढ़ सकते है। यह आर्य लोग इडिया में क्यों आये यह बात आज तक रहस्य ही है। बहुत से इतिहासकारों ने इस विषय पर बहुत सी बाते और कहानियाँ लिखी है लेकिन किसी भी कहानी का कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है। भीम संघ की टीम ने अपने शोधों में पाया है कि आर्य लोग अपनी खुशी से या इंडिया को लूटने के लिए में नहीं आये थे। असल में आर्य एक बहुत ही खूंखार जाति थी। जिसके कारण यूरेशिया के लोगों का जीवन खतरे में आ गया था और हर तरफ अराजकता का माहौल बन गया था। आर्य लोग यूरेशिया के लोगों को हर समय लूटते और मारते रहते थे। जिस से तंग आ कर वहाँ के राजा ने सारे आर्यों को इक्कठा करके एक बड़ी सी नाव में बिठा कर मरने के लिए समुद्र में छोड़ दिया था। यह लोग अपने साथ अपनी औरतों और बच्चों को नहीं लाये थे। औरतों और बच्चों का ना लाना भी आर्यों के देश निकले से सम्बन्ध में एक पुख्ता प्रमाण है। पुराने समय में जब पुरुष को देश निकला दिया जाता था तो बच्चों और औरतों को उसके साथ नहीं भेजा जाता था। यह बाते हिंदू धर्म ग्रंथों और यूरेशिया के लोगों में प्रचलित कहानियों के आधार पर भी सही है। आर्य लोग यूरेशिया के रहने वाले है इस बात के बहुत से प्रमाण है जैसे आर्य लोगों की भाषा का रूस की भाषा से मिलना, ज्योतिष शास्त्र, वास्तु, तंत्र शास्त्र, और मन्त्र शास्त्र जो की वास्तव में मेसोपोटामिया सभ्यता की देन है और DNA पर किये गए शोध आदि। यह सभी वैज्ञानिक प्रमाण है ना की कोई काल्पनिक प्रमाण है। इंडिया के लोगों के DNA पर कुल दो शोध हुए है। जिस में से एक शोध माइकल बामशाद ने लिखा था जिसको सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने भी मान्यता दी थी, जबकि दूसरा शोध राजीव दीक्षित नाम के एक ब्राह्मण ने स्वयं किया था। दोनों शोधों में पाया गया था कि ब्राह्मण, बनिया और क्षत्रिय यूरेशिया मूल के लोग है। अगर धर्म शास्त्रों को आधार मान लिया जाये तो इस से यह बात भी साफ़ हो जाती है कि यह आर्य लोग समुद्र में भटकते हुए दक्षिण इंडिया के समुद्र तट पर पहुंचे थे। ऋग्वेद, भागवत पुराण, दुर्गा सप्तसती के अनुशार पानी से सृष्टि की उत्पति के सिद्धांत से भी इस बात का पता चल जाता है कि आर्य लोग इंडिया में समुद्र के रास्ते आये थे। अर्थात आर्यों को पानी के बीच में धरती दिखाई दी थी या मिली थी। इसीलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में कहा जाता है कि धरती की उत्पति पानी से हुई है।

holika_dahanउस समय इंडिया के मूलनिवासी बहुत ही भोले भाले और सभ्य होते थे। इंडिया में सिंधु घाटी की सभ्यता स्थापित थी। जो उस समय संसार की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। इंडिया के मूलनिवासी देखने में सांवले और ऊँची कद काठी के और मजबूत शारीर के होते थे। इसके विपरीत आर्य लोग यूरेशिया से आये थे जो एक ठंडा देश है। और वहाँ के लोगों को कम मात्र में सूर्य की रोशनी मिलने से वहाँ के लोग साफ़ रंग के होते थे। यह बात वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके है कि ठन्डे प्रदेश के लोगों की चमड़ी का रंग साफ़ होता है। इसी चमड़ी के रंग का फायदा उठा कर आर्यों ने खुद को देव घोषित किया। समय के साथ आर्यों ने देश में अपनी सता स्थापित करने के लिए प्रयास शुरू किये। आर्य लोगों ने इंडिया की सभ्यता को नष्ट करना शुरू करके अपनी सभ्यता स्थापित करने के लिए हर तरह से पूरी कोशिश की। आर्य लोग छल, कपट, प्रपंच और धोखा देने में प्रवीण थे। जिसके कारण बहुत से मूलनिवासी उनकी बातों में फंस जाते। आर्यों ने इंडिया की नारी को अपना सबसे पहला निशाना बनाया, आर्य लोग आधी रात को हमला करते थे और धन धान्य के साथ साथ मूलनिवासी लोगों की बहु बेटियों को भी अपने साथ ले जाते थे। बाद में ब्राह्मणों ने बहुत सी प्रथाओं को लागू करवाया। समय के अनुसार प्रथाएं परम्पराओं में परिवर्तित हुई और आज भी इंडिया की नारी उन्ही प्रथाओं के कारण शोषण का शिकार हो रही है।

इंडिया के मूलनिवासी राजा आर्यों के यज्ञ, बलि और तथाकथित धार्मिक अनुष्ठानों के खिलाफ थे। क्योकि इन अनुष्ठानों से पशु धन, अनाज और दूसरे प्रकार के धन की हानि होती थी। जबकि धार्मिक अनुष्ठानों की आड़ में आर्य लोग अयाशी करते थे। ऋग्वेद को पढ़ने पर पता चलता है कि आर्य लोग धर्म के नाम पर कितने निकृष्ट कार्य करते थे। अनुष्ठानों में सोमरस नामक शराब का पान किया जाता था, गाये, बैल, अश्व, बकरी, भेड़ आदि जानवरों को मार कर उनका मांस खाया जाता था। पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, राजसु यज्ञ के नाम पर सरेआम खुल्म खुला सम्भोग किया जाता था या करवाया जाता था। इन प्रथाओं, जो आज परम्परायें बन गई है के बारे ज्यादा जानकारी चाहिए तो आप लोग ऋग्वेद का दशवा मंडल, अथर्ववेद, सामवेद, देवी भागवत पुराण, वराह पुराण, आदि धर्म ग्रन्थ पढ़ सकते है।

एक समय आर्यों ने इंडिया के एक शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप के राज्य पर हमला किया और वहाँ अपना राज्य और अपनी सभ्यता को स्थापित करने की कोशिश की तो राजा हिरण्यकश्यप ने भी आर्यों की अमानवीय संस्कृति का विरोध किया। राजा हिरण्यकश्यप जो की एक नागवंशी राजा था ने नागवंश के धर्म के मुताबिक़ आर्यों को अधर्मी और कुकर्मी करार दिया तथा आर्यों के धर्म को मानने से इंकार कर दिया। आर्यों ने हर संभव प्रयत्न करके देखा लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई। यहाँ तक आर्यों के राजाओं ब्रह्मा और विष्णु सहित उनके सेनापति इन्द्र को कई बार राजा हिरण्यकश्यप ने बहुत बुरी तरह हराया। राजा हिरण्यकश्यप इतना पराक्रमी था कि उन्होंने इन्द्र की तथाकथित देवताओं की राजधानी अमरावती को भी अपने कब्जे में कर लिया। जब आर्यों का राजा हिरण्यकश्यप पर कोई बस नहीं चला तो अंत में आर्यों ने एक षड्यंत्रकारी योजना के तहत विष्णु ने राजा हिरण्यकश्यप को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन आर्यों को हिरण्यकश्यप की मृत्यु का कोई फायदा नहीं हुआ क्योकि हिरण्यकश्यप की प्रजा ने आर्यों के शासन मानने से इंकार कर दिया और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष को राजा स्वीकार कर लिया। आर्यों का षड़यंत्र असफल हो गया था। राजा हिरण्याक्ष भी बहुत शक्तिशाली योद्धा था जिसका सामना युद्ध भूमि में कोई भी आर्य नहीं कर पाया। राजा हिरण्याक्ष के डर से आर्य भाग खड़े हुए। यहाँ तक देवताओं की तथाकथित राजधानी अमरावती को हिरण्याक्ष ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया। हिरण्याक्ष के पराक्रम से डरे हुए आर्यों ने एक बार फिर राजा हिरण्याक्ष को मारने के लिए एक षड्यंत्र रचा। षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए हिरण्याक्ष की पत्नी रानी कियादु को मोहरा बनाया गया। विष्णु नाम के आर्य ने रानी कियादु को पहले अपने प्रेम जाल में फंसाया और उसके बाद रानी कियादु को अपने बच्चे की माँ बनने पर विवश किया। विष्णु कई बार हिरण्याक्ष की अनुपस्थिति में रानी के पास भेष बदल बदल कर आता रहता था।

हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था, जिसके चलते विष्णु और कियादु के प्रेम के बारे राजा हिरण्याक्ष को पता नहीं चला। समय के साथ रानी कियादु ने एक बच्चे को जन्म दिया और बच्चे का नाम प्रहलाद रखा गया। राजा हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहते थे इस का पूरा फायदा विष्णु ने उठाया और बचपन से ही प्रहलाद को आर्य संस्कृति की शिक्षा देनी शुरू कर दी। जिसके कारण प्रहलाद ने नागवंशी धर्म को ठुकरा कर आर्यों के धर्म को मानना शुरू कर दिया। समय के साथ हिरण्याक्ष को पता चला कि उसका खुद का बेटा नागवंशी धर्म को नहीं मानता तो रजा को बहुत दुःख हुआ। राजा हिरण्याक्ष ने प्रहलाद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन प्रहलाद तो पूरी तरह विष्णु के षड्यंत्र का शिकार हो गया था और उसने अपने पिता के खिलाफ आवाज उठा दी। इसके चलते दोनों पिता और पुत्र के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे।

उसके बाद आर्यों ने प्रहलाद को राजा बनाने के षड्यंत्र रचा कि हिरण्याक्ष को मार कर प्रहलाद को अल्पायु में राजा बना दिया जाये। इस से पूरा फायदा आर्यों को मिलाने वाला था। रानी कियादु पहले ही विष्णु के प्रेम जाल में फंसी हुई थी और प्रहलाद अल्पायु था। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से विष्णु का ही राजा होना तय था। आर्यों के इस षड्यंत्र की खबर किसी तरह हिरण्याक्ष की बहन होलिका को लग गई। होलिका भी एक साहसी और पराक्रमी महिला थी। स्थिति को समझ कर होलिका ने प्रहलाद को अपने साथ कही दूर ले जाने की योजना बनाई। एक दिन रात को होलिका प्रहलाद को लेकर राजमहल से निकल गई, लेकिन आर्यों को इस बात की खबर लग गई। आर्यों ने होलिका को अकेले घेर कर पकड़ लिया और राजमहल के पास ही उसके मुंह पर रंग लगा कर जिन्दा आग के हवाले कर दिया। होलिका मर गई और प्रहलाद फिर से आर्यों को हासिल हो गया। इस घटना को आर्यों ने दैवीय धटना करार दिया कि कभी आग में ना जलने वाली होलिका आग में जल गई और प्रहलाद बच गया। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था आर्यों ने प्रहलाद को हासिल करने के लिए होलिका को जलाया था। हिरण्याक्ष को आमने सामने की लड़ाई में हराने का सहस किसी भी आर्य में नहीं था। तो हिरण्याक्ष को छल से मारने का षड्यंत्र रचा गया। एक दिन विष्णु ने सिंह का मुखोटा लगा कर धोखे से हिरण्याक्ष को दरवाजे के पीछे से पेट पर तलवार से आघात करके मौत के घाट उतार दिया। ताकि राजा को किसने मारा इस बात का पता न चल सके। इस प्रकार धोखे से आर्यों ने मूलनिवासी राजा हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के राज्य को जीता और प्रहलाद को राजा बना कर उनके राज्य पर अपना अधिपत्य स्थापित किया।

हम होली अपने महान राजा हिरण्यकश्यप और वीर होलिका के बलिदान को याद रखने हेतु शोक दिवस के रूप मे मनाते थे और जिस तरह मृत व्यक्ति की चिता की हम आज भी परिक्रमा करते है और उस पर गुलाल डालते है ठीक वही काम हम होली मे होलिका की प्रतीकात्मक चिता जलाकर और उस पर गुलाल डालकर अपने पूर्वजो को श्रद्धांजलि देते आ रहे थे ताकि हमे याद रहे की हमारी प्राचीन सभ्यता और मूलनिवासी धर्म की रक्षा करते हुए हमारे पूर्वजो ने अपने प्राणो की आहुति दी थी। लेकिन इन विदेशी आर्यों अर्थात ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रियों ने हमारे इस ऐतिहासिक तथ्य को नष्ट करने के लिए उसको तोड़ मरोड़ दिया और उसमे “विष्णु” और उसका बहरूपिये पात्र “नृसिंह अवतार” की कहानी घुसेड़ दी। जिसकी वजह से आज हम अपने ही पूर्वजो को बुरा मानते आ रहे है, और इन लुटेरे आर्यों को भगवान मानते आ रहे है।

ये विदेशी आर्य असल मे अपने आपको “सुर” कहते थे क्योकि यह लोग सोम रस नाम की शराब का पान करते थे। और हमारे भारत के लोग और हमारे पूर्वज राजा शराब नहीं पिटे थे इसलिए आर्य लोग मूलनिवासियों और राजाओं को असुर कहते थे। और इन लुटेरों/डकैतो की टोली के मुख्य सरदारो को इन्होने भगवान कह दिया और अलग अलग टोलियो/सेनाओ के मुखिया/सेनापतियों को इन्होने भगवान का अवतार दिखा दिया अपने इन काल्पनिक वेद-पुराणों मे। और इस तरह ये विदेशी आर्य हमारे भारत के अलग-अलग इलाको मे अपने लुटेरों की टोली भेजते रहे और हमारे पूर्वज राजाओ को मारकर उनका राजपाट हथियाते रहे। और उसी क्रम मे इन्होने हमारे अलग-अलग क्षेत्र के राजाओ को असुर घोषित कर दिया और वहाँ जीतने वाले सेनापति को विभिन्न अवतार बता दिया। और आज इससे ज्यादा दुख की बात क्या होगी की पूरा देश यानि की हम लोग इनके काल्पनिक वेद-पुराणों मे निहित नकली भगवानों याने हमारे पूर्वजो के हत्यारो को पूज रहे है और अपने ही पूर्वजो को हम राक्षस और दैत्य मानकर उनका अपमान कर रहे है।

याद रहे की वेदो और पुराणों मे लिखा है की सारे भगवान “लाखो” साल पुराने है और भगवान अश्व अर्थात घोड़े की सवारी किया करते थे और विष्णु का वाहन “गरुड़” पक्षी है लेकिन “घोड़ा(हॉर्स)” और गरुड़ पक्षी भारत मे नहीं पाये जाते थे , ये विदेशी आर्य उन्हे कुछ “सैकड़ों” साल पहले अपने साथ लेकर आए थे, जिससे ये साबित होता है की ये विष्णु और उसके सारे अवतार काल्पनिक है और इन्होने अपनी बनाई हुई सेना के राजाओ और सेनापतियों को ही भगवान और उनका अवतार घोषित किया है।

अब समय आ गया है की हम अपने देश का असली इतिहास पहचाने और अपने पूर्वज राजा जो की असुर या दैत्य ना होकर वीर और पराक्रमी महान पुरुष हुआ करते थे उनका सम्मान करना सीखे और जिन्हे हम भगवान मानते है दरअसल वो हमारे गुनहगार है और हमारे पूर्वजो के हत्यारे है जिनकी पूजा और प्रतिष्ठा का हमे बहिष्कार करना है।

जैसे की दक्षिण भारत मे हमारे एक महान पूर्वज राजा “महिषासुर” थे जिन्हे इन भगवान की नकली कहानियों मे असुर बताया गया है, जबकि वो एक बहुत विकसित राज्य के राजा थे , उसका सबूत उनके नाम पर कर्नाटक मे मौजूद प्रसिद्ध शहर (महिससुर) “मैसूर” है , जहां उनकी प्रतिमा भी मौजूद है।

और प्राचीन केरल राज्य के हमारे महान राजा “बलि” जिनसे उनका राजपाट छल से आर्यों के एक राजा (विष्णु का “बामन” अवतार) ने हड़प लिया था, उनके नाम पर आज भी समुद्र मे मौजूद द्वीप (एक देश) बलि (बालि, जावा, सुमात्रा) नाम से है। महाराज बलि और बाकी महान मूलनिवासी राजाओं के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आप हमारा लेख “अवतारवाद का सच” पढ़ सकते है।

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53 Responses to होली का सच

  1. Arvind says:

    हम ब्राह्मण सच में हरामी होते है.. और हमने इंडिया जैसे महान देश को बर्बाद करने पर शर्म आनी चाहिए…

  2. Dhanyvad, sahi jankari dene ke liye

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